Saturday, January 31, 2009

मेरी नन्ही बहन




सोचा नहीं था कि होगी वह खूबसूरत इतनी,
कि देखते ही उसका वो मासूम चेहरा मन खिल उठा,
उसकी वह मुसकुराहट, उसकी वह खिलखिलाहट,
उसे देखते ही मेरे हृदय से निकलती है दुआ ही दुआ|

उसका अजीबोगरीब तरह से बडबडाना,
और अपनी न समझ सकने वाली भाषा में समझाना,
उसका वह प्रेम प्रर्दशित करना,
और अपनी कोमल आँखों को झपकाना|

उसके आने से चारों ओर रौशनी छा जाती,
ओर मुरझाये हुए पुष्प भी लगता मनो मुस्काने लगे,
उसके नन्हे-नन्हे कदम जब धरती पर पड़े,
तो ज़मीन पर पड़े पत्थर भी सांस लेने लगे|

उसका फूलों सा नाज़ुक शरीर है इतना कोमल,
व उसका पवित्र स्पर्श लगे इतना निर्मल,
अपने छोटे-छोटे हाथों व अँगुलियों से जब वह ताली बजाये,
तो उसकी आँखों की चमक देखकर जी खुश हो जाये|

याद बहुत आती है उसकी,
जो रहती है वह इतनी दूर,
उसकी एक झलक भी नहीं देख सकती,
न मिल पाने के लिए जो हूँ मजबूर|

अब तो केवल तस्वीरों को ही देखती हूँ उसकी,
और उसकी प्रतीक्षा में काटती हूँ अपने दिन,
सोचती हूँ अब जब आएगी तो,
अपनी मीठी आवाज़ मुझे दीदी कहकर बुलाएगी|

अब तो वह और भी बड़ी हो जायेगी,
थोडा थोडा सब कुछ समझने लगेगी,
खेलेगी वह मेरे साथ और शितानी भी करेगी,
तब मैं उसे झूट-मूठ दान्तुंगी और उसके रूठने पर उसे मनाउंगी|

यही सब सोचती हूँ मैं रात-दिन,
जो मुझे मोहित कर देते हैं पल भर के लिए,
जल्दी से बस यहाँ आ जाये वो,
तो रोशन हो जाए मेरे जीवन के बुझे हुए दिए|

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